शुद्ध सच्चिदानन्द परात्पर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा-कृष्ण-जन्म-महोत्सव एवं जय-गान

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राग भीमपलासी - ताल कहरवा


शुद्ध सच्चिदानन्द परात्पर परब्रह्मा परमेश्वर-रूप।
सर्वातीत-सर्वमय, निर्गुण-सगुण, व्यक्त-‌अव्यक्त अनूप॥
नित्य अजन्मा, दिव्य जन्मधर, नित्य स्वतन्त्र, बने परतन्त्र।
सब के स्वयं एक यन्त्री नित, बना प्रेमियों को निज यन्त्र॥
सहज विरोधी-गुणधर्माश्रय, करते लीला विविध विचित्र।
करते प्रेम-धर्म का पालन-संरक्षण बनकर अरि-मित्र॥
रौद्र, वीर, वीभत्स, भयानक, करुण, हास्य, अद्‌‌भुत श्रृंगार।
शान्त और अन्यान्य रसों के बनकर स्वयं रूप साकार॥
प्रकट हु‌ए, वसुदेव-देवकी-सुत हो खल के कारागार।
नन्द-यशोदा को सुख देने किया शिशुत्व सुखद स्वीकार॥
ग्वाल-बालकों के सँग वन-वन किया समुद स्वछन्द विहार।
मधुर दिव्य रस गोपीजन का किया सभी विधि अंगीकार॥
सहज कृपावश किया कंस का मथुरा में जाकर संहार।
सादर किया पिता-माता का बन्धन से तुरंत उद्धार॥
नन्द आदि को लौटाया फिर, कर उनका समुचित सत्कार।
भेजा गोप-गोपियों के प्रति अपना परम मधुरतम प्यार॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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