शीतल-मन्द-सुगन्ध मधुर बह -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा कृष्ण जन्म महोत्सव एवं जय-गान

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राग भीमपलासी - ताल कहरवा


शीतल-मन्द-सुगन्ध मधुर बह चला पवन सुख-स्पर्श पवित्र।
असुर-विरोधी साधुमनों में उदय हु‌आ सुख सहज विचित्र॥
सहसा सुर-दुन्दुभी बज उठीं, स्वर्गलोक में अपने-‌आप।
सुनकर जन्म अजन्मा का, सुर हर्षित हु‌ए, मिटा संताप॥
किंनर, शुचि गन्धर्व गा उठे, करने लगीं अप्सरा नृत्य।
करने लगे सिद्ध-चारण स्तुति, मन में मोद भरे सब सत्य॥
लगे देव-‌ऋषि-मुनि सराह ने पृथ्वी का सौभाग्य अपार।
जलधर करने लगे सिन्धु तट जा, मृदु-मृदु गर्जन सुख-सार॥
लगा जगमगाने कारागृह, फैल गया शुचि सुखद प्रकाश।
कारा का विषण्ण कण-कण मानो कर उठा मधुर-मृदु हास॥
खुली हथकड़ी-बेड़ी श्रीवसुदेव-देवकी की तत्काल।
देख अलौकिक तेजपुंज अद्भुत बालक, हो गये निहाल॥
विष्णुरूप, भुज चार, शङ्ख शुभ, गदा-चक्र-‌अबुज अभिराम।
शोभित श्याम-नील सुन्दर तन पर पीताबर दिव्य ललाम॥
वक्षःस्थल श्रीवत्स, कण्ठ कौस्तुभमणि, नेत्र-कमल सुविशाल।
परम सुशोभित, रूप-राशि, सुर-‌ऋषि-मुनि-मन-हर परम रसाल॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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