शापवश शाम्ब के पेट से मूसल की उत्पत्ति

महाभारत मौसल पर्व के अंतर्गत पहले अध्याय में ऋषियों के शाप से शाम्ब के पेट से मूसल के उत्पन्न होने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]-

युधिष्ठिर का अपशकुन देखना

जनमेजय ने पूछा- भगवन! भगवान श्रीकृष्ण के देखते-देखते वृष्णियों सहित अन्धक तथा महारथी भोजवंशी क्षत्रिय कैसे नष्ट हो गये? वैशम्पायन जी ने कहा- राजन! महाभारत युद्ध के बाद छत्तीसवें वर्ष वृष्णिवंशियों में महान अन्याय पूर्ण कलह आरम्भ हो गया। उसमें काल से प्रेरित होकर उन्होंने एक-दूसरे को मूसलों (अरों) से मार डाला। जनमेजय ने पूछा- विप्रवर! वृष्णि, अन्धक तथा भोजवंश के उन वीरों को किसने शाप दिया था जिससे उनका संहार हो गया? आप यह प्रसंग मुझे विस्तार पूर्वक बताइये। वैशम्पायन जी ने कहा- राजन! एक समय की बात है, महर्षि विश्वामित्र, कण्व और तपस्या के धनी नारद जी द्वारका में गये हुए थे। उस समय दैव के मारे हुए सारण आदि वीर साम्ब को स्त्री के वेष में विभूषित करके उनके पास ले गये। उन सबने उन मुनियों का दर्शन किया और इस प्रकार पूछा।[1]

‘महर्षियों! यह स्त्री अमित तेजस्वी बभ्रु की पत्नी है। बभ्रु के मन में पुत्र की बड़ी लालसा है। आप लोग ऋषि हैं; अतः अच्छी तरह सोचकर बतावें, इसके गर्भ से क्या उत्पन्न होगा? राजन! नरेश्वर! ऐसी बात कहकर उन यादवों ने जब ऋषियों को धोखा दिया और इस प्रकार उनका तिरस्कार किया तब उन्होंने उन बालकों को जो उत्तर दिया, उसे सुनो। राजन! उन दुर्बुद्धि बालकों के वञ्चनापूर्ण बर्ताव से वे सभी महर्षि कुपित हो उठे। क्रोध से उनकी आँखें लाल हो गयीं और वे एक-दूसरे की ओर देखकर इस प्रकार बोले- ‘क्रूर, क्रोधी और दुराचारी यादवकुमारों! भगवान श्रीकृष्ण का यह पुत्र साम्ब एक भयंकर लोहे का मूसल उत्पन्न करेगा जो वृष्णि और अन्धकवंश के विनाश का कारण होगा। उसी से तुम लोग बलराम और श्रीकृष्ण के सिवा अपने शेष समस्त कुल का संहार कर डालोगे। हलधारी श्रीमान बलराम जी स्वयं ही अपने शरीर का त्याग कर समुद्र में चले जायेंगे और महात्मा श्रीकृष्ण जब भूतल पर सो रहे होंगे उस समय जरा नामक व्याध उन्हें अपने बाणों से बींध डालेगा।'

ऐसा कहकर वे मुनि भगवान श्रीकृष्ण के पास चले गये। (वहाँ उन्होंने उनसे सारी बातें कह सुनायीं।) यह सब सुनकर भगवान मधुसूदन ने वृष्णिवंशियों से कहा- ‘ऋषियों ने जैसा कहा है, वैसा ही होगा।’ बुद्धिमान श्रीकृष्ण सबके अन्त को जानने वाले हैं। उन्होंने उपर्युक्त बात कहकर नगर में प्रवेश किया। यद्यपि भगवान श्रीकृष्ण सम्पूर्ण जगत के ईश्वर हैं तथापि यदुवंशियों पर आने वाले उस काल को उन्होंने पलटने की इच्छा नहीं की। दूसरे दिन सवेरा होते ही साम्ब ने उस मूसल को जन्म दिया। यह वही मूसल था जिसने वृष्णि और अन्धक कुल के समस्त पुरुषों को भस्मसात कर दिया। वृष्णि और अन्धक वंश के वीरों का विनाश करने के लिये वह महान यमदूत के ही तुल्य था।[2]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत मौसल पर्व अध्याय 1 श्लोक 1-16
  2. महाभारत मौसल पर्व अध्याय 1 श्लोक 17-31

सम्बंधित लेख

महाभारत मौसल पर्व में उल्लेखित कथाएँ


युधिष्ठिर का अपशकुन देखना एवं यादवों के विनाश का समाचार सुनना | शापवश शाम्ब के पेट से मूसल की उत्पत्ति | कृष्ण और बलराम द्वारा मदिरा के निषेध की कठोर आज्ञा | श्रीकृष्ण द्वारा यदुवंशियों को तीर्थयात्रा का आदेश | कृतवर्मा सहित समस्त यादवों का परस्पर संहार | श्रीकृष्ण का दारुक को हस्तिनापुर भेजना | बभ्रु का देहावसान एवं बलराम और कृष्ण का परमधामगमन | अर्जुन का द्वारका एवं श्रीकृष्ण की पत्नियों की दशा देखकर दुखी होना | द्वारका में अर्जुन और वसुदेव की बातचीत | मौसल युद्ध में मरे यादवों का अंत्येष्टि संस्कार | अर्जुन का द्वारकावासियों को अपने साथ ले जाना | समुद्र का द्वारका को डूबोना तथा अर्जुन पर डाकुओं का आक्रमण | अर्जुन का अवशिष्ट यादवों को अपनी राजधानी में बसाना | अर्जुन और व्यास की बातचीत

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः