वृषभानु की घरनि जसोमति पुकारयौ।
पठै सुत काज कौं कहति हौं लाज तजि, पाइ परि कै महरि करति आरयौ।।
प्रात खरिकहिं गई, आइ बिहवल भई, राधिका कुँवरि कहुँ डस्यौ कारौ।
सुनी यह बात, मैं आई अतुरात, ह्याँ, गारुड़ी बड़ौ है सुत कौं तुम्हारौ।।
यह बड़ौ धरम नंद-घरनि तुम पाइहौ, नैकु काहैं न सुत कौं हँकारौ।
सूर सुनि महरि यह कहि उठी सहजहीं, कहा तुम कहतिं, मेरौ अतिहिं बारौ।।751।।