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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
प्रथमं शतकम्
श्री वृन्दावनचन्द्र के चरण कमलों में स्पृहावान होता हुआ भी महत्-पुरुषों के वचन सुनकर भी एवं सब पदार्थों को स्वार्थ-विध्वंसी (अथवा काम बिगाड़ने वाले) जानता हुआ भी श्रीवृन्दावन का आश्रय ग्रहण नहीं करता हूँ। हाय! मुझे धिक्कार है! ।।99।।
हे माता वृन्दाटवि! (जीवन में) एक बार भी यदि आपके दर्शन कर लूं, (जीवन में) एक बार भी यदि [[श्रीराधा]-कृष्ण नाम उच्चारण कर पाऊँ, और (जीवन में) एक बार भी यदि भक्तिपूर्वक आपके शरणान्न पुरुषों को प्रणाम कर लूं, तो निश्चय ही आप मेरी उपेक्षा नहीं करोगी।।100।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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