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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
दशमं शतकम्
श्रीराधा की स्नेहमय मनोहर चेष्टा से ही वह पुलकित हो उठती है, स्वामिनी से दिखाई हुई समस्त कला विद्या जानती है, श्रीराधा-कृष्ण की अत्यन्त कृपा, स्नेह और विश्वास का पात्र है, उसकी एकमात्र पदनखमणि की शोभा पर मेरे कोटि-कोटि प्राणोपहार न्यौछावर किए जा सकते हैं, वह प्रियतम युगल किशोर के सुन्दर विचित्र सूक्ष्म वस्त्र धारण कर रही हैं, एवं इन वस्त्रों के अंचलों में अनेक प्रकार के पत्रादिके स्तवक-शोभित विचित्रभाव धारण कर रही है।।3।।
मैं श्रीवृन्दावन के कुंजों को स्मरण करता हूं, उस नागर दिव्य दम्पति को भी स्मरण करता हूँ जो सुगौर-नील-वर्णयुक्त हैं एवं असीम काम विलास सागर में निमग्न होकर दिन-रात कुछ भी नहीं जानते हैं।।4।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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