वृन्दावन महिमामृत -श्यामदास पृ. 32

श्रीवृन्दावन महिमामृतम्‌ -श्यामदास

श्री प्रबोधानन्द सरस्वतीपाद का जीवन-चरित्र

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यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ लोगों ने यह पेशा बना लिया है कि वे किसी महानुभाव की रचना को किसी अन्य के नाम हस्तलिपि रूप में तैयार कर लेते हैं और उसमें कुद श्लोकादि जो रचयिता से सम्बन्धित हैं निकाल देते हैं और अपने मतलब के बढ़ा देते हैं और तीन-तीन चार-चार सौ वर्ष पहले की तारीख-संवत डाल कर रख देते हैं। समय आने पर उन हस्त लिखित प्रतियों के प्रमाण उल्लेख कर जनसाधारण की आंखों में धूल झोंकते हैं। अपना उल्लू सीधा करने के लिए अनेक चरित्र भी पद्य-गद्य में रचकर लिपियाँ तैयार कर लेते हैं। अतः ऐसे प्रमाण निराधार एवं कल्पित होते हैं।

विश्वस्त सूत्रों से पता लगा है कि एक बाबा अभी दो वर्ष तक बरसाना में रहकर यही दुष्कर्म सम्पन्न करके आये हैं। भगवान जाने कब और किस समय कैसा उत्पात वे खड़ा करेंगे?

अन्त में गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के महामण्डलेश्वर श्रीयुत श्री रामदास जी शास्त्री के वचन पुनः याद दिलाते हुए लेखक की श्री गौड़ीय वैष्णवों के चरणों में विनम्र प्रार्थना है कि उन्हें अपने साहित्य तथा साहित्यकारों के दस्युओं से सावधान रहना परम आवश्यक है, वरना जिसके पास कोई उपासना का आधार नहीं, जिनका कोई शास्त्र सम्मत सिद्धान्त नहीं, भक्ति-साहित्य नहीं, साहित्यकार भी नहीं, वे आप के अनुपम साहित्य-भण्डार को देखकर हर प्रकार के दाँव-पेच लड़ाकर अपहरण करने की ताक में हैं।

इन शब्दों के साथ सुधी पाठकों से क्षमा याचना करते हुए श्री सरस्वती पाद की प्रस्तुत रचना श्रीवृन्दावन महिमामृत के पांचवें संस्करण के रसास्वादन की विनम्र प्रार्थना करता हूँ।

श्री वृन्दावन

वैष्णवपदरजाभिलाषी
श्री श्याम दास (श्री श्यामलाल हकीम)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीवृन्दावन महिमामृतम्‌ -श्यामदास
क्रमांक पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. परिव्राजकाचार्य श्री प्रबोधानन्द सरस्वतीपाद का जीवन-चरित्र 1
2. व्रजविभूति श्री श्यामदास 33
3. परिचय 34
4. प्रथमं शतकम्‌ 46
5. द्वितीय शतकम्‌ 90
6. तृतीयं शतकम्‌ 135
7. चतुर्थं शतकम्‌ 185
8. पंचमं शतकम्‌ 235
9. पष्ठ शतकम्‌ 280
10. सप्तमं शतकम्‌ 328
11. अष्टमं शतकम्‌ 368
12. नवमं शतकम्‌ 406
13. दशमं शतकम्‌ 451
14. एकादश शतकम्‌ 500
15. द्वादश शतकम्‌ 552
16. त्रयोदश शतकम्‌ 598
17. चतुर्दश शतकम्‌ 646
18. पञ्चदश शतकम्‌ 694
19. षोड़श शतकम्‌ 745
20. सप्तदश शतकम्‌ 791
21. अंतिम पृष्ठ 907

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