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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
अनन्त रति-कामदेव को भी महा विस्मय उत्पन्न करने वाले रूप शोभायुक्त श्रीराधा एवं उसके अनन्य नागरमणि वहाँ रात दिन अनन्त रतिक्रीड़ा करते हैं, एवं एकात्म-उज्ज्वल भावना युक्त अश्रु पुलकित गातयुक्त चंचल सखीगण द्वारा नित्योत्सव के अनुष्ठान में नित्य आश्चर्यमय किशोरवेशधारी ललितयुगल सरकार की सेवा होती है।।69।।
श्रीराधा-कृष्ण का सुगौरनीलवपु मानों असीम कांति-समुद्र हैं, उसके प्रेम रसात्मक-प्रवाह द्वारा चिद्-अचिद् निखिल वस्तुओं की द्वैत-प्रथा (भेदमूलक व्यवहार) लुप्त हो रही है। अत्युज्ज्वल, अनादि, अनन्त प्रकार से उल्लासशील महा-कामदेव की अति महा विहारस्थली एवं अपने सिवाय अखिल वस्तुओं की विशेष आसक्ति के नाशक श्रीवृन्दावन का मैं भजन करता हूँ।।70।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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