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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
प्रेयसी का वेश विन्यास कर उसे अपने क्रोड़देश में बिठाकर जो पुलकायमान हो रहे हैं, एवं बार-बार अनेक प्रशंसा करके उसे हंसा रहे हैं और पुनः पुनः अतिशय चंचल होकर विविध काम चेष्टाएं विस्तार करने वाले श्रीराधालम्पट श्रीकृष्ण हमें सदा सुख प्रदान करें।।25।।
इस वृन्दावन की भूमि चित् ज्योतिर्मय है, लता-वल्लरी-वृक्षादि भी चिन्मय है, पक्षी मृगादि भी सब चिद्घन हैं, प्रफुल्लित कुसुममय सरोवर भी चिदेकरस जल से पूर्ण हैं, पर्वत नदी तड़ाग मणि-धातु और मेघादि सब चिन्मय है, इस तरह अनेक मनोहर निकुंजों से संयुक्त यह श्रीवृन्दावनधाम चिन्मय ही है।।26।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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