विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
जिनके शीतल छाया में कुसुमादि-रचित आसन पर उपविष्ट श्रीराधा-कृष्ण अति सुधा-बिन्दु-धाराओं से भीजते हैं, अनन्त रसदानकारी युगल किशोर जिनसे गिरे हुए महास्वादिष्ट फलों को परस्पर प्रशंसा करते-करते भोजन करते हैं, श्रीवृन्दावन के उन वृक्षों को मैं नमस्कार करता हूँ।।21।।
हे मन! अनन्त सुगन्धिपूर्ण, नाना प्रकार के अनन्त रुचिर कुसुमों से शोभित, अनन्त आनन्द द्रवमय मकरन्द-प्रवाह से युक्त अनन्त सुन्दर फलगुच्छ सम्वलित, अनन्तशाखा-पल्लवयुक्त श्रीवृन्दावन के अनन्त तरु-समूह का ध्यान करो।।22।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज