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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
जो अपने परम सुविमल विचित्र ज्योति प्रवाह से दिशों दिशाओं को आलोकित कर रहे हैं एवं अति सुगन्धित मधुर उत्कृष्ट मकरन्द-धारा बरसा कर चौदह भुवनों को उन्मत्त कर रहे हैं, वे श्रीवृन्दावन के वृक्षराज विचित्र पुष्प-पल्लव रसमय सुन्दर फलस्तवक और अस्फुट कलिकाओं द्वारा परमानन्द राशि प्रदान कर रहे हैं।।19।।
दिव्यातिदिव्य चन्द्र-समूह जिनकी मुखचन्द्र कांति का किसी प्रकार स्पर्श भी नहीं कर पाते ऐसे श्रीराधिकाकृष्णचन्द्र-नामक अति रसिक-युगलकिशोर को अपने नीचे आया देख कर जो श्रीवृन्दावनवासी धन्य वृक्ष-शरीरधारी भगवत्-पार्षदगण सदा उत्तमोत्तम पल्लव और कुसुमों की वर्षा कर शय्या की रचना करते हैं- उनका भजन कीजिए।।20।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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