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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
त्रिगुण के पार विद्यामय भगवत् धाम है, उसमें अति महाश्चर्य शोभा समृद्धियुक्त अति उज्ज्वल श्रीवृन्दावन प्रकाशित हो रहा है, वहाँ रात दिन काम-रसोन्मत्त दिव्य और गौरश्यामवर्ण युगलकिशोर अतिशय कांत रसमयी मधुर क्रीड़ा करते हैं- मैं उनकी सेवा कब प्राप्त कर सकूँगा?।।7।।
गौरश्याम-वर्णमय अति रमणीय अंगयुक्त एक अति मधुर लावण्यता की अनन्त असीम छटा विकीर्ण करते हुए काम-विकार वश कोटि चमत्कृति धारण करके पुलकित शरीर तथा रसाविष्ट चित्त से नित्याश्चर्यमय श्रीयुगलकिशोर जिसके कुंजों कुंजों में विहार करते हैं, हे हृदय ! सदा उस श्रीवृन्दावन का स्मरण कर।।8।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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