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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
हे धन्य शिरोमणि! यदि भगवत् चरण-कमलों के एकांतिक प्रेम के अति दुर्लभ परम रहस्य को सम्यक रूप से प्राप्त करने की तुझे इच्छा है, तो तू आद्य आस्वाद्य-रसात्मक अखिल भावों से पूर्ण श्रीराधा-कृष्ण के नित्य-विहार मन्दिर इस श्रीवृन्दावन में वास कर।।5।।
यदि भोग की इच्छा है, तो यहाँ क्या सर्वोत्तम सकल भोग तू नहीं भोग सकता? यदि मोक्ष की इच्छा है, तो समस्त साधनों के क्लेश के बिना ही वह तुम्हें प्राप्त हो सकता है। यदि श्रीभगवान् की परम भक्ति चाहता है तो उसका भी परम रहस्य यहाँ तुम्हें प्राप्त हो जायेगा। यह समस्त तत्त्व सब लोकों से अवधारण करके श्रीवृन्दावन का ही सेवन कर।।6।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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