विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
महा पतित-पावन, भवरूप महासर्प से भयभीत जनों के रक्षक, अपने समस्त सौहार्द प्रयोग करने के लिए अपनी ओर उन्मुख करके चिद्घन भाव में भावित करने वाला, महामुनि गणों के नित्य ध्यान का विषयीभूत और मेरा एकमात्र जीवनभूत यह श्रीराधिकारमणा-धाम श्रीवृन्दावन ही है।
नित्य रतिरस में उत्सुक चित्त, एवं रति आशा में व्याकुल होकर कांता को हाथ से पकड़कर बार-बार अति रोमांचित विग्रह से गुप्त कुंजों में जाने वाले-श्रीराधा के महाप्राण स्वरूप, ललितादि (नायक) भावाविष्ट अथवा ललितादि सखीवृन्द के आत्मस्वरूप किसी श्यामकिशोर का श्रीमद्वृन्दावन में निरन्तर वास करते हुए आत्मा से (स्वरूपदेह) से अनुसरण कर।।79।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज