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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
कैवल्य मुक्ति आदि समस्त पुरुषर्थों को थुत्कार करके कोई कोई महाबुद्धिमान योगीन्द्रगण पक्षीरूप धारण कर जिस श्रीवृन्दावन के वृक्ष-वृक्ष पर आनन्द प्राप्त करते हैं और सम्यक् रूप से प्रस्फुरित युक्ति द्वारा धर्म-अर्थ-काम मोक्षादि समस्त पुरुषार्थों को एवं उनके साधनों को सर्वथा नाश करने वाली उच्च कल-कल ध्वनि करते हैं- उस श्रीवृन्दावन को मैं नमस्कार करता हूँ।।58।।
पृथ्वी पर प्रकटित अप्राकृत एवं परात्पर सुरसशाली श्रीराधामाधव के नित्यक्रीड़ावन इस वृन्दावन का सर्वत्यागी होकर आश्रय ग्रहण कर।।59।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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