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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
मोहिनी श्रीराधिका जिन वृक्षों के नीचे अवस्थान करके तर्ज्जनी को उठाते हुए अमृतमय वाक्य विन्यास, द्वारा श्रीश्याम सुंदर को अपने मोहनकारी नेत्रों को, जो ऊपर देखने से अपूर्व छवि धारण करते है, तथा अपने मुखचन्द्र को दिखाती हैं- नागरवर उन बताये हुए दिव्य फलों को नीचे फैलते हैं, एवं श्रीराधा उन समस्त कलों को संग्रह करती है- श्रीवृन्दावन के उन वृक्षवृन्दों का भजन कर।।54।।
महाज्योतिस्वरूप, प्रति पद पद मे महानन्द मधुर, महोच्च शाखा विस्तारपूर्वक महार्थ अर्थात् धर्म, अर्थ, काम मोक्ष एवं प्रेमादि को वर्षण करने वाले महा मतातम श्रीवन्दावन के वृक्ष शोभित हो रहे हैं।।55।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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