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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
श्रीमद्वृन्दावन का यही अद्भुत प्रभाव है कि, जहाँ उसके सम्बन्ध की लेशमात्र भी गन्ध है वहाँ वह रस, समुद्र प्रदान करने के लिए उसे चिर बन्धन में आबद्ध किए रखता है।।43।।
श्रीवृन्दावन की महिमा मुझ जैसे व्यक्ति के गोचरीभूत नहीं हैं, क्योंकि इसने अपने दिव्य गुणों द्वारा श्रीमत्पुरुषोत्तम को भी वशीभूत कर रखा है।।44।।
अत्यन्त उन्मद महाप्रेमरससार से सुसज्जित एवं अपनी समस्त वस्तुओं के प्रति आत्मवत् व्यवहारशील श्रीवृन्दावन नामक वन का भजन कर ।।45।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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