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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
अहो! इस धन्य पृथ्वीतल पर जीवों को महोच्च मद देने के लिए अतिशय मधुर महानन्द-समुद्र श्रीवृन्दावन प्रादुर्भूत हुआ है- जो संसाररूप महागर्त में पड़े हुए हैं, जो सर्वत्यागी हैं, और जो मुक्त एवं जो ईश्वर हैं वे भी इस श्रीवृन्दावन का एक बार दर्शन करते ही मुग्ध हो जाते हैं।।41।।
जो लोग विषयों में अत्यन्त आविष्ट हो रहे हैं और जो ब्रह्म-निष्ठ कहे जाते हैं, वे भी केवल एक बार ही इस वृन्दावन की शोभा दर्शन कर आनन्द से मूर्च्छित हो जाते हैं।।42।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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