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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
दिव्य दिव्य अनन्त रसमय फूलों-फलों से शोभित होकर दिव्य अपरिसीम सुगन्ध से दिव्य पराग से, दिव्यमधु से तथा पक्षियों से व्याप्त होकर एवं दिव्य पल्लव कोरकादि से मण्डित होकर मैं इस वृन्दावन में अनेक वृक्षों का शरीर धारण करके गौर-श्याम श्रीयुगलकिशोर कौतुकवश पल्लव पुष्पादि चयन करते हैं, खेल करते हैं, उस श्रीवृन्दावन का मैं सम्यक्रूप से ध्यान करता हूँ।।35।।
जिस वृन्दावन में अति दिव्य पुष्प फलादि द्वारा मन को हरण करने वाले, मूलपर्यन्त विशाल पारिजातदि जाति के महा सुंदर एवं स्निग्ध शाखाओं युक्त वृक्षों पर आरोहण करके गौर-श्याम श्रीयुगलकिशोर कौतुकवश पल्लव पुष्पादि चयन करते हैं, खेल करते है, उस श्रीवृन्दावन का मैं सम्यकरूप से ध्यान करते हूँ।।36।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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