विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
आनन्दरस में मग्चित्त हुए जिन कल्पवृक्षों के नीचे स्वच्छ एवं विशाल स्थलों पर मन्मथ-कौतुक-चंचल श्रीराधिका-कृष्ण मिलकर विराजते हैं, उनमें से दिव्य मकरन्दधारा वर्षित होती होती है दिव्य कुसुम और फलों से पृथ्वी ढक जाती है तथा पक्षी समूह कलरव छोड़कर अचलरूप से अवस्थान करते हैं।।33।।
महामधुर, वृक्ष गुल, लतादि एवं महामाधुर्य से मण्डित जिसका धरणीतल है, सुमधुर भ्रमर, पक्षी एवं मृगों से जो गुंजायमान हैं, जहाँ के सरोवर नदी, एवं पर्वत महामाधुर्य के श्रेष्ठ साररूप हैं, ऐसास महामधुर भावदानकारी यह श्रीवृन्दावन साक्षात माधुर्यरूप से ही प्रकट हुआ है।।34।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज