विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
श्री प्रबोधानन्द सरस्वतीपाद का जीवन-चरित्र
श्री राधा परम रस चमत्कारमाधुर्य की सीमा है - इस रहस्य को किसे ज्ञान था - इन सब रहस्यों को एकमात्र श्रीकृष्ण चैतन्य देव ने परम कृपालुता वश उद्घाटन किया है। श्री वृन्दावन रस की विशुद्ध प्रेम भक्ति सम्पत्ति को प्रदान करने के लिये स्वयं श्री व्रजेन्द्र नन्दन ही श्री शचीनन्दन के रूप में अवतीर्ण हुये। इनके आविर्भाव से पहले इन रहस्यों को कौन जानता था? अतः श्रीमन्महाप्रभु श्रीकृष्ण चैतन्यदेव की कृपा से ही श्री सरस्वती पाद में राधातत्त्व, कृष्णतत्त्व, तत्केलिविलास तत्त्व एवं धामतत्त्व आदि परम साध्य स्वरूपों का यथार्थ स्फुरण हो उठा। अतः इन विभिन्न निष्ठापूर्ण रचनाओं को देख कर पृथक्-पृथक् रचयिताओं की बात सोचना तत्त्व-अनभिज्ञता है’ मात्सर्य है। पूज्य पाद श्री नाभा जी कृत श्री भक्तमाल तथा उनकी प्राचीनतम एवं सर्व सम्प्रदाय-सम्मत टीका भक्ति रसबोधिनी[1] में श्री सरस्वतिपाद के विषय में अति स्पष्ट उल्लेख है, जो समस्त भ्रम-सन्देह को नष्ट कर देता है-श्रीचैतन्यचन्द्रजू के पारषद प्यारे हैं। राधाकृष्ण-कुञ्जकेलि, निपट नवेलि कही, झेलि रस-रूप दोऊ किये दृग-तारे हैं। वृन्दावन-वास को हुलास लै प्रकाश कियौ, दियौ सुखसिन्धु कर्म-धर्म सब टारे हैं। ताही सुनि-सुनि कोटि-कोटि जन रंग पायौ, विपिन सुहायौ, बसे तन-मन वारे हैं।। श्री प्रबोधानन्द सरस्वति पाद महान् रसिक थे। रस-रसोपासना के वेत्ता थे और भगवदानन्द में सदा मग्न रहते थे। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु जी के प्रिय पार्षद थे- परम गौरनिष्ठ थे। इन्होंने श्री श्रीराधा कृष्ण की ऐसी निपट-नवीन कुञ्जकेलि का वर्णन किया कि इनसे पहले (श्री गौरांग कृपा के बिना) उसका कोई अनुमान ही नहीं कर सका था। इस पंक्ति से श्री राधारस सुधानिधि अभिप्रेत है- ऐसा शोध कर्ताओं का मत है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कवित्त सं. 612
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज