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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
प्रतिपद में सखीगण के सुचमत्कारी परस्पर रूप-शोभा एवं ललित रति-कला-चातुर्य-माधुर्यादि के प्रवाह को धारण करने वाले, तथा एक दूसरे के प्रति उदित महा कामरंग के वशीभूत हुए अति रमणीय एवं पुलकित विग्रह श्रीगौरश्याम युगलकिशोर श्रीवृन्दावन में विराजमान हैं। रसिकपुरुष ही उनका स्मरण करते रहते हैं।।31।।
अनन्त सुषमा समुद्र, अनन्त माधुर्य भूमि अनन्त चित चन्द्रिका समुद्र, सौभाग्यभूमि एवं अनन्त भगवत रस के सर्वश्रेष्ठ रहस्य की मूलस्थली यह अनन्त श्रीवृन्दावन मेरी सब चेष्टाओं को अनन्तत्त्व दान करे अर्थात मैं अनन्त भाव से श्रीवृन्दावन का आस्वादन कर सकूँ।।32।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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