विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
जिनको एक बार मात्र स्पर्श करने से एवं जिनकी कथा एक बार मात्र सुनने, कहने या स्मरण करने से ही वे करुणावश होकर (धर्म-अर्थ-काम-मोक्षादि) सब पुरुषार्थों को प्रदान कर देते हैं और जो प्रकृति रस सारात्मक ज्योति से परे विराजमान हैं, श्रीवृन्दावन के उन तरु-लताओं को मैं नित्य नमस्कार करता हूँ।।21।।
अति स्वच्छ अत्यन्त उज्ज्वल, बहुविधि सुगन्धि से सुवासित, परागपुंज से एवं वृक्षों से चुचाई हुई नव मकरंद से शोभायान श्रीवृन्दावन की भूमि के ऊपर सुन्दर वृक्षा-शाखाएँ घटाटोपवत् छाई हुई हैं एवं नीचे तलदेश रसमय स्निग्ध मधुर है, वहाँ श्रीराधा-कृष्ण के युगलचरण विहार कर रहे हैं।।22।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज