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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
श्री प्रबोधानन्द सरस्वतीपाद का जीवन-चरित्र
वस्तुतः जिन लोगों को चिन्मय अद्वयतत्त्व परमानन्द रस वस्तु श्रीकृष्ण का स्वरूप ज्ञान नहीं है, उनके शक्ति, धाम एवं परिकरों के तत्त्व में किञ्चित भी प्रवेश नहीं है, उनकी बुद्धि में इस प्रकार के उपद्रव उठ खड़े होना स्वाभाविक है। श्रुति-स्मृति-पुराण-इतिहास अपौरुषेय प्रस्थानत्रयी के प्रति जो नास्तिक है, विशेषतः निगम-कल्पतरोर्गलित-फल रस-निधि श्रीमद्भागवत वर्णित भागवत धर्मों के विपरीत आचरण करने वाले हैं, उनके पक्ष में विभिन्न निष्ठान्तर्गत वैचित्रीमय रस का स्वरूप या रसोपासना तो बहुत दूर की वस्तु है- रस का शाब्दिक ज्ञान भी उन्हें प्राप्त होना असम्भव है। वह कूपमण्डुक की तरह अपनी मनोकल्पित धारणाओं में सीमित रहकर उपासना के किसी एक अंश रूपी हल्दी की गांठ लेकर अपने को पंसारी भी मान सकते हैं। सच्चिदानन्दमय परब्रह्म स्वयं-भगवान व्रजेन्द्रनन्दन श्रीकृष्ण पर तत्त्व-वस्तु है, महाभावस्वरूपा उनकी ह्लादिनी शक्ति श्री राधा उनसे अभिन्न-तत्त्व है। राधाभाव-द्युति-सुवलित श्री गौरांग तो स्वयं श्रीकृष्ण हैं ही। उनका क्रीड़ा स्थल चिन्मय-धाम श्रीवृन्दावन उनकी स्वरूप शक्ति संधिनी की परिणति है- इन सिद्धान्तों का जिसे ज्ञान है, वह गौर-निष्ठा, कृष्ण-निष्ठाा, राधा-निष्ठा अथवा धाम-निष्ठा में एक ही तत्त्व का अनुभव एवं साक्षात्कार कर सकता है। श्री सरस्वति पाद ने स्वयं ही उपर्युक्त भ्रान्ति की निवृत्ति श्री चैतन्य-चन्द्रामृत में अपने शब्दों में इस प्रकार की है-तथा तथोत्सर्पति हृद्यकस्मात् राधापदाम्भोजसुधाम्बुराशिः।।87।। को वेत्ता कस्य वृन्दावनविपिन महामाधुरीषु प्रवेशः। को वा जानाति राधां परमरस चमत्कारमाधुर्यसीमा- मेकश्चैतन्यचन्द्रंः परमकरुणया सर्वमाविश्चकार।।130।। प्रेम ही अद्भुत परम पुरुषार्थ है - यह बात पहले किसने कानों से सुनी थी? श्री नाम की कैसी महिमा है - कौन जानता था यह। श्री वृन्दावन की महामाधुरी में किसका प्रवेश था? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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