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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
उसमें (श्रीवृन्दावन में) मनोहर कुंज समूह हैं, जो शोभा-सम्पत्ति एवं दिव्य रत्नलतिकादिकों की आनन्दमय पुष लक्ष्मी से असमोर्ध्वता को प्राप्त हो रहा है और उसमें उत्तम उत्तम उपकरणों से सुसज्जित अति उत्कृष्ट शय्या विद्यमान हैं एवं चारों ओर श्रीराधामाधव की भोजन एवं भोग्य की वस्तुएं शोभित हैं, इस प्रकार सर्वत्र केवल आनन्द को ही साम्राज्य प्रतीत होता है।।106।।
अहो! इस प्रकार कुंजमण्डल के भीतर महामनोहर कुण्ड है, जो आनन्दघन महारसरूप निर्मल अमृत (जल) से सदा पूर्ण रहता है; उसके चारों तीर रत्नों से बंधे हुए है; घाट उत्तमोत्तम रत्नमय सीढियों से मण्डित हैं- उसके किनारे पर कदम्बवृक्ष की छाया पर मणिमय दीवार (जंगला) शोभित है।।107।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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