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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
समस्त आनन्द राशियों के सार का जो परम असीम समुद्र हैं, श्रीराधिका-दासियों के आगे जो अनुनय करते हैं, काममला-विद्या के जो पारगामी हैं, जो नित्य काम-विप्लव दिशा को प्राप्त हैं, श्रीवन्दावन में निरन्तर विहार करने वाले उन श्यामकिशोर में मेरी कोई अनिर्वचनीय आश्चर्यमय रति हो- यही प्रार्थना है।।21।
श्रीवृन्दावन-नामक वन श्रीवृन्दावन ही की भाँति शोभा दे रहा है, जहाँ श्रीराधाकृष्ण के सदृश ही एकमात्र मधुर रसाकृति श्रीराधा-कृष्ण निरन्तर विराजमान हैं एवं उन युगल-किशोर में ही गतप्राण तथा उन ही का आत्म-स्वरूप श्रेष्ठ सखियां दोनों के रस में सराबोर होकर निरन्तर आनन्द प्राप्त कर रही हैं।।22।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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