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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
अहो! वही अद्भुत किशोर-अवस्था एवं वही सुचमत्कारमयी श्यामा (श्रीराधा), वही अशेष मोहन-सौन्दर्य और वही लीलाएं वही महा अद्भुत अश्रु, पुलक, स्तम्भादिभाव और श्रीहरि की वही श्रीराधा- वश्यता आदि मेरे चित्त मे चमत्कार विधान करें-यही प्रार्थना है।।19।।
अहो! वही श्रीवृन्दावन-माधुर्य, वही निकुंजों की मधुरिमा-अहह!! वह कामानध गौरश्याम श्रीयुगलकिशोर की माधुरी एवं दोनों का पस्पर वार्तालाप-उत्सव, छलपूर्वक स्पर्श, परिहास एवं केलिसमूह का महाअद्भुत् माधुर्य ही मेरे चित्त में स्फुरित हो- यही प्रार्थना करता हूँ।।20।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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