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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
समस्त गोपकिशोरों की सुन्दर वधूएं जिनके चरणकमलों की छाया भी नहीं देख पातीं, ऐसी सर्वनिपुणता की निधि दासियों से (श्रीराधा) सेवित हो रही है। उन युगल-किशोर की प्रणयजात गाढ़ पुलकावलीरूप शोभाशालिनी सखियों के द्वारा वह (श्रीराधा) कामावेश से महानन्द में आकुल होने के कारण दिनरात सेवित हो रहीं है-।।3।।
(श्रीराधा) अपनी सखी एवं प्रियदासीगण स्वरूप तारागणों में मानों अति अद्भुत ज्योतिपूर्ण सौभाग्यघन पूर्णकला चन्द्ररूप से प्रकाशित हो रही है। अहो! प्रति अंग से उच्छलित अद्भुत महा गौरकान्ति के ही एकमात्र समुद्र की निज रसोत्सवात्मक तरंगों से निखिल जगत् को सम्यक् रूप से प्लावित कर रही हैं।।4।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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