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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
आश्चर्य युक्त मणिमय, पर्वतों, अति महाशोभापूर्ण कन्दरों, दिव्य ज्योत्स्ना के अमृतमय झरनों एवं स्वर्णरत्नमय जल की नदियों से शोभित, नवीन अद्भुत लतागृहों, आश्चर्यजनक रत्नमय वृक्षों, नाना रत्नमय पशुपक्षियों एवं इस प्रकार की अन्यान्य अद्भुत वस्तुओं से शोभित-।।105।।
प्रकाश्यमान पर्वत की तलहटियों में निर्जन लतागृहों से भूति, दीप्तिशील मनोहर पुष्पवाटिकाओं एवं अनेक शोभामय स्थानों से विचित्रित, उज्ज्वलरसों से रंञ्जित महा कुंजावलि से मनोहरी, सखियों के सहित श्रीश्यामसुन्दर एवं उनकी प्रिया श्रीराधाजी से अंगीकृत उस दिव्यवन में (श्रीवृन्दावन में)- ।।106।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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