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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
कह्लार, उत्पल, पद्म, कैरव आदि असंख्य प्रफुल्लित पुष्पों की सुगन्धि से एवं हंस, सारस व चक्रवाक-दम्पति तथा कारण्डव आदि पक्षियों की अति आनन्द मदयुक्त अनेक क्रीड़ा चनित कलकल ध्वनि से महारिमणीय, तथा इधर-उधर उड़ते हुए भंवरों के शतशत यूथों की गुञार से भली प्रकार मंजुल-।।103।।
श्रीराधा-कृष्ण के आश्चर्यजनक कामदर्पमय अनेक विहारों से युक्त, विशुद्ध श्रृंगाररस से प्रवाह, तरंग एवं आवर्त्त समूह युक्त, अमृत से भी अधिक माधुर्यमय अति उत्कृष्ट आस्वादन करने योग्य शीतल जल से पूर्ण एवं श्रेष्ठ-2 रत्नों से जड़ित तटों वाली दिव्य श्रीकालिन्दी के द्वारा अंक में लिये हुए।।104।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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