विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
आश्चर्यमय फल फूलों से पूर्ण चारों ओर आश्चर्यमय क्रीड़ा-परायण पक्षियों की कानों को अमृततुल्य महा कलकल ध्वनि से मुखरित, मकरन्दपान करने में उन्मत्त भँवरों की मनोहारी मृदुल ध्वनि संयुक्त, श्रीकृष्ण के प्रिय दिव्य दिव्य अनेक वृक्ष लताओं से भूषित-।।97।।
अनन्त अनन्त श्रीकृष्णप्रिय दिव्य सुगन्धियुक्त नाना प्रकार के तुलसी वृक्षों से, अगणित सन्तान, हरिचन्दन तथा कल्पवृक्षों के वनों से दिव्य दिव्य अनेक सुन्दर पारिजात कानन व मन्दार वृक्षों के द्वारा शोभित एवं श्रीहरिवल्लभ नीप-कदम्ब आदि वृक्षों से मण्डित-।।98।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज