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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
मधुर से सुमधुर, पूर्णप्रेमामृत-समुद्र का घनीभूत का स्वरूप अति रमणीय यह श्रीवृन्दावन धाम प्रकाशित हो रहा हैं इसमें काम विवश, आनन्दकन्द सुललित गौरश्याम श्रीयुगलकिशोर के हम दर्शन करते हैं।।89।।
श्रीवृन्दावन में प्राणेश्वरी के परमनिगूढ़तर इंगित को समझने वाले, प्रियप्रियतम के उस प्रणय की चंचलतामय स्वभावयुक्त अपने यूथ के (परिकर के) वचनानुकूल आचरण करने में चतुर, निज काम लीला-परायण तत्त्व (स्वरूप) को स्मरण कर।।90।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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