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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
लतागृह में विराजमान अत्यन्त कामगुग्ध गौरश्याम युगलकिशोर की-गन्ध-ताम्बूल-माला आदि अर्पण के द्वारा अति मृदुल विलेपनादि एवं उत्तम बीजना के द्वारा दास्यरस में आविष्ट होकर सेवा कर।।85।।
हे मन! जो (श्रीवन्दावनधाम) किशोर अवस्थायुक्त अद्भुत रूप भंगी व माधुर्ययुक्त अति मानोहर मुरलीवदन (श्रीश्यामसुन्दर) के द्वारा विश्व को नित्य ही अद्भुत कामात्मक कर रहा है एवं जो धाम (श्रीराधा) कोमल तप्त-स्वण कान्ति की तरंगों से दशों दिशाओं को सिंचन कर रहा है- प्रेम-उत्कण्ठापूर्वक उसी श्रीधामवृन्दावन का ही भजन कर ।।86।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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