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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
नवीन प्रेम प्रवाह करने वाले नवीन रसमय श्रीवृन्दावन के पथ में विहार करने वाले, नित्य नवीन महा आश्चर्यमय शोभा-माधुर्यराशि के धारण करने वाले, स्वर्ण एवं मरकत-मणिवत् प्रभा वाले-ज्योतिर्मय नवरसिक श्रीयुगलकिशोर मेरे हृदय में बसे रहें।।83।।
बहुविधि वेशधारी श्रीराधानागर प्रिया को किसी तरह शय्या पर सुलाकर उरुदेश में स्थापन करके रोमांचित होकर (प्रिया को) निरन्तर चुम्बन और आलिंगन कर रहे हैं- उनके चरण कमलों की सेवा कर।।84।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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