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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
श्री प्रबोधानन्द सरस्वतीपाद का जीवन-चरित्र
श्री उज्ज्वल नीलमणि में व्रजलीला में श्री तुंगाविद्या का स्वभाव वर्णित है- दक्षिण प्रखरा नायिका, माननिर्बन्धासहा, नायक-भेद्या तथा लघु-प्रखरा। अतः श्री प्रियाप्रीतम के विच्छेदाभास होने पर यह अन्दर-बाहर जल उठती है। इसलिए इस रचना में कहीं भी मान का इन्होंने उल्लेख नहीं किया है। केवल श्लोक सं. 170 में मान का संकेत मिलता है। श्री वृन्दावन महिमामृत[1] की तरह इस रचना[2] में भी श्री राधा नाम-महिमा राधादास्य-निष्ठा, युगलकेलि विलास आदि का निरूपण किया गया है। यहाँ यह विषय आलोचनीय है कि उक्त रचना- “श्री राधारससुधानिधि” के दो रूप प्राप्त होते हैं। एक रूप तो श्री प्रबोधानन्द सरस्वती पाद विरचित है, जिसमें सर्वप्रथम भारतीय प्राचीन परम्परानुसार नमस्कारात्मक मंगलाचरण का इस प्रकार उल्लेख है-प्रोर्ध्वीकृत्य भुजद्वयं हरिहरीतयुच्चैर्वदन्तं मुहुः। नृत्यन्तं द्रुतमश्रुनिर्झरचयेः सि चन्तमुर्वीतलं गायन्तंनजपार्षदैः परिवृतं श्रीगौरचन्द्रं नुमः।।1।। “प्रेम पुलकित स्वकीय विग्रह-सुषमा द्वारा प्रफुल्लित कदम्ब की शोभा को निन्दित करने वाली स्वर्ण दण्डवत दोनों भुजाओं को बारम्बार ऊँचा उठाते हुए, नृत्यपूर्वक उच्चस्वर में श्री हरि-ध्वनि करते समय प्रेमाश्रुओं से पृथ्वी दो परिसिंचन करने वाले, संकीर्तकारी-पार्षदों से परिवृत श्री गौरचन्द्र श्रीकृष्ण चैतन्य देव को मैं नमस्कार करता हूँ।” और अन्त में ग्रन्थकार ने अपना परिचय इस प्रकार दिया है-हृन्नभ उदाशीतलयद् यो राधारससुधानिधिना।।262।। “उस गौर-सिन्धु की जय हो, जिन्होंने मेरे मायावाद रूपी सूर्य से सन्तप्त हृदयाकाश को “श्रीराधारससुधानिधि” के द्वारा सुशीतल किया है।” इस रूप के अर्थात् श्री श्रीगौरांग प्रिय पार्षद श्री प्रबोधानंद सरस्वतिपाद-विरचित श्री राधारससुधानिधि के अनेक संकलन बंगला भाषा में मूल, अनुवाद एवं संस्कृत टीकाओं सहित चिर मुद्रित प्राप्त होते हैं। श्री मधुसूदन दास अधिकारी श्री वैष्णव संगिनी, कार्यालय एलारी जिला हुगली ने बंगला अक्षरों में इसे अनुवाद सहित लगभग 100 वर्ष पहले मुद्रित कराया था। उन्होंने भी इस रूप की प्राचीन हस्त लिखित श्री राधारस सुधानिधि जयपुर के श्री गोविन्द पुस्तकागार में विद्यमान होने का उल्लेख किया है। सोशल एण्ड कल्चरल एजूकेशन डवलपमेण्ट आफ कल्चरल एण्ड ऐस्थेटिक एजूकेशन की पंचवर्षीय योजना (Second five Year Plan-Social and cultural Education Development of cultural & Aesthetic Education) के अन्तर्गत भारत सरकार की सहायता से प्रकाशित श्री श्रीगौड़ीय वैष्णव अभिधान के रचयिता श्री हरिदासजी ने भी इस बात की पुष्टि की है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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