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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
जल में स्वर्ण रंग के पदम् एवं कलियाँ आदि शोभित हैं, अनेक प्रकार के मणि-रत्नों से बने हुए दोनों तट अमृतसार उन्मत्त करने वाले द्रक्षादि के क्षीर-रसादि से बने हुए हैं एवं क्रीड़ामय दिव्य सुन्दर मछलियों के उछलने से आश्चर्यजनक प्रतीत होते हैं, अनेक रत्नमय विचित्र घाट बने हुए हैं एवं उनमें अति अद्भुत सीढ़ियाँ शोभा दे रही हैं।।71।।
अनेक प्रकार के आश्चर्यजनक सुन्दर पुष्पों से लदे हुए वृक्ष-लताओं की कुंजों से श्री यमुना मनोहर हो रही है, पुलिनों में कर्पूर की भाँति उज्ज्वल बालू शोभा दे रही है एवं (चारो दिशाओं में) सुन्दर फैल रही है। तीर-तीर पर इधर-उधर चकित होकर हरिणीगण घूम रही हैं, चारों दिशाओं में दिव्य कदम्ब, चम्पक के वृक्षों की सुगन्धि छा रही है।।72।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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