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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
निर्मलता ब्रह्मानन्दमय महाज्योति के बीच स्वानन्द की उज्ज्वल सार कोई एक भगवज्ज्योति प्रकाशित हो रही है, उसके भी बीच अद्भुत अतुलनीय माधुर्य-भूमि यह श्रीवृन्दावन है। हे सखे! इस स्थल पर उस गौरश्याम-युगलविग्रह का भजन कर।।30।।
जिसकी महाप्रणय-माधुरी की तरगयुक्त स्वर्णचम्पकवत् देदीप्यामान अंगकान्ति की विचित्रता देखकर श्रीहरि अपूर्व श्रीवृन्दावन में पद-पद पर विमोहित हो जाते हैं, वह श्रीराधा नामक किशोरमूर्त्ति मेरे हृदय में स्फुरित हो-यह मेरी प्रार्थना है।।31।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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