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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
श्रीराधामुरलीधर के अति मधुर श्रीहस्त एवं चरणकमलों के स्पर्श जो प्रफुल्लित हो रहीं हैं, तथा जिनका चित्त पूर्ण हर्ष के समुद्र में निमग्न है, स्वयं लक्ष्मीदेवी जिस अतुलनीय सौभाग्य की वाञ्छा करती हैं- वही जिनको सम्यक् प्रकार से प्राप्त है- महाभाग्यवानों की शिरोमणि ऐसी ये लतायें श्रीवृन्दावन में आनन्द ले रही हैं।।24।।
आनन्दघन समुद्र में उदित महाद्वीप के चन्द्र समान जो यह श्रीवृन्दावन है, उसमें प्रफुल्लित फूलादि सम्पत्ति वाले, सबके लिए अथवा समस्त आश्चर्य को उत्पन्न करने वाले महा-माधुर्य से पूर्ण, दुःख-पापादि को दूर फेंकने वाले निन्तर वृद्धिशील कान्ति वाले एवं मुनीन्द्रगण भी जिनकी स्तुति करते हैं- ऐस वृक्षों की प्रतिदिन में वन्दना करता हूँ।।25।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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