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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
हे श्रीवृन्दावन! आपकी वनशोभा सर्वोत्कृष्ट है, हे परानन्द! आपके मधुर गुणों को जो निशिदिन गान करता है, एवं हे वृन्दावन! जो कोटि जीवन भी आपके लिए अतितुच्छ जानता है, फिर उसके लिए संसार में ऐसी क्या वस्तु है, जिसकी तृण के समान उपेक्षा वह नहीं कर सकता?।।22।।[1]
श्रीवृन्दावन मण्डल में एकमात्र सत्प्रेम के रसस्वरूप श्रीराधाकृष्ण के अभय पदतलों में मस्तक अर्पण कर यदि अवस्थान कर सकूँ- तो लोकभय, धर्मभय किंवा सौ-सौ भयानक आधि-व्याधियों से और तो क्या अखिल (ब्रह्माण्ड) के अधिपति से भी मुझे कोई भय नहीं है।।23।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नोट- यह श्लोक दो बार कहा गया है- द्वितीय शतक का 28 श्लोक देखिए।
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