विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
कदम्बवृक्ष के मूल का अवलम्बन लिए हूए, पीताम्बर धारी, श्रीराधा का दर्शन करते-करते मुरली बजाने वाले, श्रीहरि श्रीवृन्दावन में जययुक्त हो रहे हैं।।17।।
श्री यमुना के पुलिन-वन में मोहन-नवकुंज-मन्दिर के द्वार पर श्रीराधा के साथ बैठे हुए एवं रसवती सखियों से सेवित श्रीकृष्ण का मैं आश्रय लेता हूँ।।18।।
कुंज कुंज में कामकेलिरंग के वश परिहास्य वाक्यरचना में प्रत्युत्पन्नमति (चतुर) गौरश्यामवर्ण चतुरशिरोमणि श्रीयुगल-किशोर का मैं भजन करता हूँ।।19।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज