वृन्दावन महिमामृत -श्यामदास पृ. 128

श्रीवृन्दावन महिमामृतम्‌ -श्यामदास

द्वितीयं शतकम्

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नवीनकलिकोद्गतिं कुसुमहास-संशोभिनीं
नवस्तवकमण्डितां नवमरन्दधारां लताम्।
तमालतरुसंगतां समवलोक्य वृन्दावने
पतिष्णुमति विह्वलामधृत काऽपि में स्वामिनीम्।।84।।

नवीन लता में नवीन कालिका निकल रही है और बहु कुसुम विकाश के छलरूप हास्य से संशोभित है, वह नव स्तवक से मण्डित है एवं उससे नव मधुधारा निःसृत हो रही है- इस प्रकार की लता का तरुण तमाल वृक्ष के साथ मिलन देखकर, अति विह्वल चित्त होकर मेरी स्वामिनी श्रीवृन्दावन में मूर्च्छित होकर जब गिरने लगीं तब किसी सखी ने उन्हें धारण कर लिया।।84।।

शुद्धानन्दरसैकवारिधि-महावर्तेषु नित्यं भ्रम-
न्नित्याश्चर्यवयोविलाससुषमा-माधुर्यमुन्मीलयत्।
अत्यानन्दान्मुहुः पुलकितं नुत्यत् सखीमण्डले
श्रीवृन्दावनसीम्नि धामयुगलं तद्गौनीलं भजे।।85।।

नित्य एकमात्र शद्धानन्दरस समुद्र के महावर्तों में भ्रमणकारी, नित्य आश्चर्यमय अवस्था, विलास, शोभा एवं माधुर्यादि को प्रकाशित करने वाले तथा अतिशय आनन्द के आधिक्य के कारण बारम्बार पुलकित अंग होकर सखी समाज में नृत्य करने वाले, श्रीवृन्दावन में विराजमान उन गौर-नील वर्ण विशिष्ट श्रीयुगलकिशोर को मैं भजन करती हूँ।।85।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीवृन्दावन महिमामृतम्‌ -श्यामदास
क्रमांक पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. परिव्राजकाचार्य श्री प्रबोधानन्द सरस्वतीपाद का जीवन-चरित्र 1
2. व्रजविभूति श्री श्यामदास 33
3. परिचय 34
4. प्रथमं शतकम्‌ 46
5. द्वितीय शतकम्‌ 90
6. तृतीयं शतकम्‌ 135
7. चतुर्थं शतकम्‌ 185
8. पंचमं शतकम्‌ 235
9. पष्ठ शतकम्‌ 280
10. सप्तमं शतकम्‌ 328
11. अष्टमं शतकम्‌ 368
12. नवमं शतकम्‌ 406
13. दशमं शतकम्‌ 451
14. एकादश शतकम्‌ 500
15. द्वादश शतकम्‌ 552
16. त्रयोदश शतकम्‌ 598
17. चतुर्दश शतकम्‌ 646
18. पञ्चदश शतकम्‌ 694
19. षोड़श शतकम्‌ 745
20. सप्तदश शतकम्‌ 791
21. अंतिम पृष्ठ 907

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