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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
श्रीयमुना के किनारे कदम्बकुंज में नलिनी के भ्रम से दौड़ते हुए भ्रमर के भय से ‘‘वह कृष्णवर्ण भ्रमर मेरी ओर आ रहा है, अतएव हे कृष्ण! मैंने तुम्हारी शरण ग्रहण कर ली है’’- इस प्रकार वाक्य उच्चारण करने वाली प्रियतमा के सुन्दर आलिंगन से दामोदर अति प्रसन्न हुए।।79।।
श्रीवृन्दावन में महा सुगन्ध विस्तार करने वाले खिले हुए मल्लिका वन श्रीराधा-मुरलीधर अति रसोल्लास वश परस्पर स्पर्श कर रहे हैं, वे दोनों कुसुमों के द्वारा बारम्बार एक दूसरे के लिए विचित्र भूषण निर्माण कर रहे हैं, रति कौतुकवश उनके वस्त्र भूषण स्थानभ्रष्ट हो गये हैं, अतः वे अनवस्था को प्राप्त हो रहे हैं- ऐसे श्रीयुगलकिशोर का मैं भजन करती हूँ।।80।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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