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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
नव निकुंज विलासी गोपवधू कुमुदिनीवृन्द को आनान्दित करने वाले एवं श्रीराधा के द्वारा परिचुम्बित श्रीमदनमोहन के मुखचन्द्र में मेरा मन लगा रहे।।74।।
छिपने के लिये निकुंज कुटी में जाने पर एवं श्रेष्ठ सखी (ललिता) के नेत्रों के इशारे को पाकर श्रीहरि के सहित सुमिलिता एवं तदनन्तर (श्रीहरि के द्वारा) आलिंगिता एवं चुम्बिता श्रीराधा को स्मरण कर।।75।।
कोटि कामदेव सदृा मनोहर मूर्त्ति, नवलतागृह मध्यवर्त्ती श्रीहरि अत्यन्त प्रणयवती आनन्दपूर्ण श्रीराधा से प्रियसखी के बहाने बलपूर्वक रमण कर रहे हैं- ऐसा स्मरण कर।।76।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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