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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
जिनके प्रति अंग से उज्ज्वल अद्भुत नवीन स्वर्ण चन्द्र-चन्द्रिका का सागर उच्छलित हो रहा है, वही नवीन कैशोर के चमत्कार की हेतुरूपा श्रीवृन्दावनेश्वरी मेरे हृदय में स्फुरित हों ।।68।।
अत्यन्त मायाशीला स्त्रियां निश्चय ही सर्वस्व नाश कर देती हैं। अतः चतुर व्यक्ति को इस मायाविस्तारी नारी शब्द-शून्य श्रीवृन्दावन प्रदेश में वास करना उचित है।।69।।
विष्णुमाया से उत्तीर्ण होकर भी बुद्धिमान पुरुष स्त्रियों में विश्वास न करके अत्यन्त वैराग्यवान होकर नारी के भय से चकित-चित्त हुआ निरन्तर श्रीवृन्दावन वास करता है।।70।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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