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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
जो परम रमणीया हैं एवं भुज लताओं में बाजूबन्द तथा कंकणों से सुशोभित है, शब्दायमान काञ्ची नूपुर तथा मणिमय कर्णफूलादिकों से सुसज्जित हैं, जो सुन्दर वेणीयुक्त हैं, जिनके स्तन-मुकुल पर हार समूह प्रतिबिम्बित हो रहा है, उन प्रेमशीला-स्वर्णवर्णा श्री राधा की दासियों का स्मरण कर।।59।।
अहो! वृन्दावन में समस्त पशु-पक्षी, वृक्ष लतादिकों को अपने स्वर्ण सदृश मधुर से मधुर लावण्य राशि के द्वारा एवं महाप्रेमानन्द में उन्मत्त करने वाले रसयुक्त अक्षुण्ण सौन्दर्य के द्वारा मोहित करते हुए मेरा सर्वस्व किशोर (श्री राधा-दासी) रूप प्रकट हुआ है।।60।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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