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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
एकान्त लता मन्दिर में श्रीराधा-कृष्ण विराजमान हैं, रत्यावेश होने से रसवश उनकी दृष्टि, बोलिन एवं अंगचेष्टा अत्यन्त शोभ दे रही है, उनके अति मनोहर विलास का दर्शन कर दूसरी ओर देखती हुई वे (सखियाँ) बाहर आने लगीं, उनको श्री युगल किशोर ने हँसते हँसते पकड़ लिया- तब वे लज्जा युक्त एवं सौख्यरस में मग्न हो सिर झुका कर खड़ी हो गयीं।।57।।
उनकी (सखियों की) वयस किशोर है, सुन्दर स्वर्ण वर्ण हैं एवं मोहिनी मूर्त्ति हैं, उनका मध्य देश (कटि) अति सुन्दर एवं कृश है, नितम्ब तथा स्तन युगल पृथुल हैं, नासिका में रत्न एवं स्वर्ण जटिल मुक्ता समूह लटक रहा है, सिर पर सुन्दर वेणी है एवं (परिधान में) रेशमी वस्त्र धारण कर रही हैं- इस प्रकार से श्रीराधा जी की सखियों का स्मरण कर।।58।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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