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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
कोई कोई अपने प्रियतम युगलकिशोर की चेष्टा को देख कर अपने कार्य को भूल चुकी हैं, और कोई गोपी अपर सखि के अनुयोग से अपने कार्य में प्रवत हो रही है एवं प्यारे युगल किशोर की सुन्दर क्रीड़ा में सहयोग कर रही है। इस प्रकार श्री राधा कृष्ण के अत्यन्त प्रेम में विभोर अद्भुत रूप-कान्ति-अवस्था युक्त सखियों का श्री वृन्दावन में अन्वेषण कर।।43।।
एक तो अद्भुत मोर पुच्छ का चूड़ा धारण किये हुए हैं, दूसरे के सिर पर श्री वेणी की चमत्कारी शोभा है, एक का वक्ष स्थल चन्दन-चित्रित है, एवं दूसरे के वक्ष स्थल पर विचित्र काञ्चुलि शोभित है, एक विचित्र पीताम्बरधारी है एवं दूसरा जंघा पर्यन्त विस्तृत वस्त्र के ऊपर बहुरत्नमय विचित्र लाल वस्त्र से सुशोभित है।।44।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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