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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
श्रीवृन्दावन में अत्यन्त अद्भुत कुसुमों से शोभित रत्नमय लता-निकुञ्ज-प्रासाद (महल) में पुष्पमय चन्द्रातप समूह के द्वारा मनोहर पुष्प-पालंक की शय्या पर विचित्र काम युद्ध में खेलन परायण श्री राधा कृष्ण को देख देख कर आनन्द से विह्वल हो कर पृथ्वी पर लोट-पोट होने वाली सखि वृन्द की वन्दना करनी चाहिए।।39।।
प्रियतम युगलकिशोर के प्रसादी अलंकार, श्रेष्ठ वस्त्र माल्यादि से भूषित नवीना गोपकुमारीवृन्द माला, अलंकार, कस्तूरी, अगुरु, कुंकुम, मनोमद गन्ध, ताम्बूल, वस्त्र आदि समाहरण के द्वारा एवं अनुपम ताल-लय युक्त वाद्य तथा नृत्यादि के द्वार निकुञ्ज-विलासी अखण्ड-स्व-रस विलासी श्री राधा-कृष्ण जोड़ी की जो सतृष्णभाव से सेवा कर रही हैं, मैं उनकी शरणापन्न होती हूँ।।40।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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