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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
पूर्ण प्रेमानन्द-दिव्य ज्योत्स्ना के समुद्र में एक आश्चर्य रूप द्वीप है, फिर उसमें यह वृन्दाटवी और एक आश्चर्य है, उसमें भी परम आश्चर्य रूप यह गौर-नील युगल किशोर हैं।।33।।
इस पृथ्वी पर जो मुमुक्षु हैं, वे धन्य हैं, जो हरि भजन-परायण हैं, वे धन्य-धन्य हैं। उनसे उत्कृष्ट वे हैं, जो श्री कृष्ण के चरण कमलों में परमासक्त हैं। उनसे अधिक रुक्मिणीवल्लभ-श्री कृष्ण के भक्त हैं, उनसे श्री यशोदानन्दन-श्री कृष्ण के भक्त वृन्द अधिक प्रशंसनीय हैं, उनसे अधिक धन्य सुबल सखा-श्रीकृष्ण के प्रियगण हैं, उनसे अधिक गोपी जन-धन्य हैं, श्री कृष्ण की प्रीति-परायण है। किन्तु श्रीमद्वृन्दावनेश्वरी के परम रस विवश श्री कृष्ण-आराधक सबके मुकुट मणि हैं।।34।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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