विरथा जन्‍म लियौ संसार -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग देवगंधार



विरथा जन्‍म लियौ संसार।
करी कबहुँ न भक्ति हरि की, मारी जननी भार।
जज्ञ, जप, तप नाहि कीन्‍ह्यौ, अल्‍प मति बिस्‍तार।
प्रगट प्रभु नहि दूरि हैं, तू देखि नैन पसार।
प्रबल माया ठग्‍यौ सब जग, जनम जूआ हार।
सूर हरि कौ सुजस गावौ, जाहि मिटि भव-भार।।294।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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